क्रिसमस के बाद हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत में ठंड का असर बढ़ता चला गया, जो अब तक जारी है. पिछले कई दिन से ठंड और शीतलहर ने लोगों की कंपकंपी छुड़ा दी है. कई लेयर में कपड़े पहनने के बाद भी ठिठुरन महसूस हो रही है. पहाड़ों से ज्यादा ठंड मैदानी इलाकों में पड़ रही है. हालांकि, धुंध और कोहरे के कहर के बीच कभी-कभी निकल रही धूप मामूली ही सही राहत जरूर दे रही है. इस बीच आपके मन में ये सवाल जरूर उठा होगा कि जब ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पूरी दुनिया हर साल पहले से ज्यादा गर्म रही है तो वैश्विक स्तर पर इतनी ज्यादा ठंड क्यों पड़ रही है?
मौसम विज्ञानियों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के बाद भी पड़ने वाली ठंड के लिए दुनियाभर में हो रही कुछ प्राकृतिक घटनाएं जिम्मेदार हैं. धरती के अलग-अलग हिस्सों का तापमान एक ही समय में काफी अलग रहता है. कहीं बहुत ज्यादा गर्मी और कहीं हाड़कंपाती ठंड पड़ती है. दरअसल, धरती पर सूर्य की किरणें अलग-अलग हिस्सों पर अलग तरह से पड़ती हैं. ऐसे में उनका असर भी अलग हो जाता है. धरती के पोलर जोन्स पर सूर्य की किरणें सीधे नहीं पड़ती हैं. सर्दियों में 24 घंटे इन इलाकों में रात रहती है. ऐसे में यहां पूरे साल बर्फ जमी रहती है. वहीं, धरती के बीच के हिस्से में सूर्य की किरणें सीधी पड़ने से गर्मी ज्यादा रहती है.
धरती के कुछ हिस्से ठंडे और कुछ गर्म क्यों
धरती के पोलर जोन्स में हवा गोलाकार आकार में बहुत तेजी से बहती है. ऐसे में धरती के जिस भी इलाके से होकर ये हवा बहती है, वो हिस्सा बेहद ठंडा रहता है. वहीं, गर्म क्षेत्र में सब-ट्रॉपिकल जेटस्ट्रीम बहती हैं. अगर धरती ग्लोबल वार्मिंग की चपेट में ना हो तो दोनों तरह की हवाओं के बीच के इलाकों में हवाओं की रफ्तार संतुलित रहेगी. इससे वे अपने-अपने इलाकों में सामान्य तौर पर बहती रहेंगी. लेकिन, जैसे ही पृथ्वी का तापमान सामान्य से ज्यादा होता है, धरती के पोलर जोन्स में ठंडी हवाओं की रफ्तार कम होने लगती है.
मैदानी इलाकों में कड़ाके की सर्दी के लिए ध्रुवीय भंवर यानी पोलर वॉर्टेक्स भी जिम्मेदार होते हैं.
उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड क्यों पड़ रही
पोलर जोन्स के उलट गर्म क्षेत्र की हवाओं में फैलाव आने लगता है और ये पोलर जोन्स में पहुंचने लगती हैं. पोलर जोन की सर्द हवा कमजोर पड़कर गर्म क्षेत्र की तरफ बहने लगती है. इससे पोलर जोन में तो गर्मी बढ़ती है, लेकिन गर्म क्षेत्र में कड़ाके की सर्दी पड़ने लगती है. जलवायु की इस व्यवस्था को पोलर वॉर्टेक्स यानी ध्रुवीय भंवर कहा जाता है. अब समझते हैं कि इस व्यवस्था से भारत के मौसम पर क्या असर पड़ता है? दरअसल, पोलर वॉर्टेक्स के कारण पश्चिमी विक्षोभ मध्य एशिया में ठंडी हवा का वो दबाव है, जो पश्चिम से भारत में प्रवेश करता है. इसी पश्चिमी से उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है.
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पहाड़ों से ज्यादा सर्दी मैदानी इलाकों में क्यों
मौसम की पोलर जोन्स वाली व्यवस्था ही हिमालय और उत्तर भारत में देखने को मिल रही है. इसी कारण भारत के पहाड़ी इलाकों से ज्यादा ठंड दिल्ली, पंजाब समेत उत्तर भारत के ज्यादातर मैदानी इलाकों में पड़ रही है. वहीं, उत्तर भारत की गर्म हवाएं हिमालय की तरफ जा रही हैं. यही ग्लोबल वार्मिंग का बुरा असर है, जो हमें मौसम में अजीबोगरीब बदलावों के तौर पर लोगों को झेलना पड़ रहा है. एक्सेटर यूनिवर्सिटी में जलवायु विज्ञान के प्रोफेसर जेम्स स्क्रीन ने कहा कि बेशक सर्दियां पहले के मुकाबले गर्म होंगी, लेकिन भीषण ठंड का प्रकोप अभी भी जारी रहेगा.
जलवायु परिवर्तन का कितना है असर
विकास की अंधी दौड़ में की गई गलतियों से पैदा हुए जलवायु संकट ने उत्तरी गोलार्ध में बर्फ के गायब होने की खतरनाक प्रवृत्ति को जन्म दिया है. कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन भी इन बर्फीले विस्फोटों में अहम भूमिका निभा सकता है, क्योंकि आर्कटिक में गर्मी बढ़ने से आशंका बढ़ जाती है कि ठंडी, ध्रुवीय हवा दक्षिण की ओर बढ़ सकती है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, हमारा मौसम जेट स्ट्रीम से प्रभावित होता है, जो वायुमंडल में तेजी से बहने वाली हवा की लहरदार नदी है. जब जेट स्ट्रीम दक्षिण की ओर बहती है, तो यह ठंडी आर्कटिक हवा को उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया में धकेल सकती है. जब यह उत्तर की ओर पीछे हटेगा, तो गर्म हवा भी उत्तर की ओर आगे बढ़ेगी.
जलवायु परिवर्तन भी इन बर्फीले विस्फोटों में अहम भूमिका निभाता है.
ध्रुवीय भंवर मैदानों में ठंड के लिए कितने जिम्मेदार
मौसम विज्ञानियों के मुताबिक, इसके अलावा समताप मंडल में बहुत ऊपर जेट स्ट्रीम के स्तर से ऊपर उत्तरी ध्रुव के आसपास स्थित तेज हवाओं की एक बेल्ट भी भीषण ठंड के लिए जिम्मेदार हो सकती है. इसे ध्रुवीय भंवर कहा जाता है. ध्रुवीय भंवर एक घूमते हुए शीर्ष की तरह है. अपनी सामान्य अवस्था में यह बहुत तेजी से घूमता है, जिससे आर्कटिक क्षेत्र में भयंकर ठंडी हवा बंद रहती है, लेकिन यह बाधित हो सकता है और अपने रास्ते से भटक सकता है, खिंच सकता है और विकृत हो सकता है. ठंडी हवा बाहर निकाल सकता है और जेट स्ट्रीम के रास्ते पर असर डाल सकता है.
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ठंडी हवा को नियंत्रित करते हैं ध्रुवीय भंवर
आर्कटिक ध्रुवीय भंवर बहुत ठंडी हवा को घेरने वाली तेज हवाओं की एक पेटी है, जो उत्तरी ध्रुव के ऊपर समताप मंडल में ऊंचाई पर है. आमतौर पर ध्रुवीय भंवर स्थिर होता है, जिससे ठंडी हवा नियंत्रित रहती है. जब इसमें किसी वजह से हलचल होती है, तो यह कम स्थिर हो जाता है और फैलता है, जिससे ठंडी हवा दक्षिण की ओर बहने लगती है. यह जेट स्ट्रीम के मार्ग को प्रभावित करता है, जो वायुमंडल में नीचे बैठता है और हमारे मौसम के लिए जिम्मेदार है. यह 2021 में हुआ, जिससे टेक्सास में भयंकर ठंड आई, जिससे लगभग 250 मौतें हुईं और राज्य के बड़े हिस्से में बिजली गुल हो गई.
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FIRST PUBLISHED : January 17, 2024, 15:31 IST